बनारस न्यूज डेस्क: प्राचीन नगरी काशी, जिसे बनारस या वाराणसी भी कहा जाता है, अपने हर कदम पर इतिहास और परंपरा की गवाही देती है। यहां त्रेतायुगीन कथाओं और परंपराओं का जीवंत स्वरूप आज भी देखने को मिलता है। भगवान राम के काशी आगमन से लेकर वरुणा की रेत से शिवलिंग स्थापना और भगवान भोले को बाटी-चोखा का भोग लगाने तक की परंपरा आज भी यथावत बनी हुई है। मार्गशीर्ष कृष्ण षष्ठी के दिन लोग दूर-दराज से स्वतः ही यहां आते हैं और इस युगों पुरानी परंपरा को जीवित करते हैं।
रामेश्वर महादेव के प्रति आस्था रखने वाले परिवार और लोग हर साल मेले में आते हैं। रोशनी सिंह, नीतू सिंह, सीमा सिंह जैसी महिलाएं अपनी सास, चाची और पड़ोसियों के साथ नियमित रूप से इस मेले में भाग लेती हैं। वे भगवान भोले का दर्शन और प्रसाद ग्रहण कर अपने परिवार और रिश्तेदारों के सुख-धर्म की कामना करती हैं। इस दौरान सभी मेल-मुलाकात करते हैं और हालचाल साझा करते हैं।
बाबा के दर्शन और प्रसाद के साथ-साथ लोग भगवान को बाटी-चोखा, चावल-दाल और अन्य परंपरागत व्यंजन अर्पित करते हैं। पुष्पा देवी और सुषमा देवी जैसे परिवार हर साल यह भोग अपने परिजनों और मेहमानों के लिए तैयार करती हैं। इस आयोजन में रिश्तेदार एक साथ मिलकर आनंद लेते हैं, घर-गृहस्ती की खरीदारी करते हैं और पूरे दिन को परिवार और आस्था के संग जोड़ते हैं।
इस मेला में बिहार, रामपुर, मीरजापुर और आसपास के गांवों के लोग भी पहुंचते हैं। स्नान, दर्शन और प्रसाद ग्रहण के बाद सभी परिवार एक-दूसरे के सुख-दुख साझा करते हैं। लोगों का कहना है कि इस आयोजन से आस्था के साथ-साथ स्वास्थ्य और मानसिक संतोष भी मिलता है। बाबा भोले का आशीर्वाद लेकर सभी लोग धन्य महसूस करते हैं और इस ऐतिहासिक परंपरा का हिस्सा बनकर खुशी मनाते हैं।