उत्तर प्रदेश की सियासत में इन दिनों कड़ाके की ठंड के बावजूद राजनीतिक पारा अपने चरम पर है। उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दिल्ली में हुई हालिया मुलाकात ने राज्य के सियासी गलियारों में नई चर्चाओं को जन्म दे दिया है। यह मुलाकात महज एक शिष्टाचार भेंट है या इसके पीछे किसी बड़े राजनीतिक बदलाव की पटकथा लिखी जा रही है, इसे लेकर विश्लेषकों के बीच मंथन जारी है।
गोलबंदी और ब्रजेश पाठक का दिल्ली दौरा
इस पूरी हलचल की शुरुआत लखनऊ में हुई एक 'सहभोज' बैठक से हुई। 23 दिसंबर को भाजपा विधायक पीएन पाठक के आवास पर जुटे करीब 35-40 ब्राह्मण विधायकों ने राजनीतिक पंडितों को कान खड़े करने पर मजबूर कर दिया। हालांकि इस बैठक को सामाजिक बताया गया, लेकिन सत्ता के गलियारों में इसे ब्राह्मण अस्मिता और शक्ति प्रदर्शन के तौर पर देखा गया।
ठीक इसी पृष्ठभूमि में ब्रजेश पाठक का अचानक दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री से मिलना कई मायनों में महत्वपूर्ण माना जा रहा है:
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समाज का प्रतिनिधित्व: ब्रजेश पाठक को उत्तर प्रदेश में भाजपा के सबसे बड़े ब्राह्मण चेहरे के रूप में देखा जाता है। माना जा रहा है कि उन्होंने विधायकों की बैठक के बाद समाज की भावनाओं और अपेक्षाओं का फीडबैक शीर्ष नेतृत्व तक पहुँचाया है।
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मंत्रिमंडल विस्तार और नई जिम्मेदारी: यूपी में मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलें लंबे समय से चल रही हैं। नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति के बाद संगठन और सरकार के बीच समन्वय बिठाने में पाठक की भूमिका अहम हो सकती है।
शिष्टाचार भेंट या मिशन 2027 की तैयारी?
आधिकारिक तौर पर ब्रजेश पाठक ने इस मुलाकात को वाराणसी में होने वाली नेशनल वॉलीबॉल चैंपियनशिप के निमंत्रण से जोड़ा। वाराणसी प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है, ऐसे में वहां के महापौर अशोक तिवारी के साथ पीएम से मिलना प्रोटोकॉल का हिस्सा भी हो सकता है।
लेकिन राजनीति में 'क्रोनोलॉजी' का बड़ा महत्व होता है:
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23 दिसंबर: ब्राह्मण विधायकों की लखनऊ में बैठक।
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25 दिसंबर: पीएम मोदी का लखनऊ दौरा।
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26 दिसंबर: ब्रजेश पाठक की दिल्ली में पीएम से एकांत मुलाकात।
विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले अपने सबसे भरोसेमंद वोट बैंक (ब्राह्मण समाज) को यह संदेश देना चाहती है कि उनकी बात सीधे प्रधानमंत्री तक पहुँच रही है।
विपक्षी खेमे की नजर और आंतरिक समीकरण
जहां भाजपा इसे एक सामान्य मार्गदर्शन प्रक्रिया बता रही है, वहीं विपक्षी दल इसे भाजपा के भीतर चल रही 'अन्तर्कलह' और जातीय असंतुलन से जोड़कर देख रहे हैं। पिछले कुछ समय में यूपी में ठाकुर बनाम ब्राह्मण की जो चर्चाएं हवा में तैरती रही हैं, यह मुलाकात उन चर्चाओं पर विराम लगाने या उन्हें नई दिशा देने की एक कोशिश भी हो सकती है।
भाजपा की रणनीति हमेशा से 'सबका साथ' की रही है, लेकिन यूपी जैसे जटिल राज्य में जातीय संतुलन बिठाना किसी चुनौती से कम नहीं है। ब्रजेश पाठक का बढ़ता कद और पीएम मोदी से उनकी निकटता यह दर्शाती है कि आने वाले समय में वे उत्तर प्रदेश भाजपा के सबसे प्रभावशाली रणनीतिकारों में से एक बने रहेंगे।